फिल्म में वह दोस्तों की मुश्किल समय में मदद करते दिखाए जाते हैं। इसके अलावा फिल्म में फुनसुख को विज्ञान और तकनीक से जुड़े कई रोचक आइडियाज पर काम करते दिखाया जाता है। उनके पास कई पेटेंट्स भी होते हैं।
यह फिल्म असल जिंदगी के फुनसुख वागडू यानी सोनम वांग्चुक पर आधारित थी। सोनम वही शख्स हैं, जिन्हें अपने नए आइडियाज पर बेहतरीन काम करने के लिए जाना जाता है। उनकी सबसे बड़ी खोज पहाड़ों पर तैनात रहने वाले सेना के जवानों के लिए एक टेंट बनाना है, जो माइनस 20 डिग्री सेल्सियस में भी अंदर के तापमान को 15 डिग्री सेल्सियस रखता है। इसकी खूबी यह है कि पहाड़ों पर जवानों के टेंट को गर्म रखने के लिए जलाए जाने वाले कोयला या केरोसिन तेल जैसे जीवाश्म ईंधन का उपयोग नहीं करके सोलर एनर्जी का उपयोग किया जाता है। उनकी इस अनोखी खोज को पहाड़ों पर पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
सोनम के पास पहाड़ों में जीवन को सरल बनाने के लिए अपने अनोखे आइडियाज होते हैं, जिन पर वह हमेशा काम करते रहते हैं। ऐसे ही उनके एक आइडिया की ही उपज थी, लद्दाख के तिकोने बर्फ स्तूप।
लद्दाख जैसे दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में कम बारिश होने की वजह से पानी की समस्या बनी रहती है। सूखे की समस्या से जूझते लद्दाख के लिए सोनम ने एक आर्टिफिशियल ग्लेशियर भी बनाया है। इसके जरिए गर्मियों में सिंचाई की जाती है। सोनम ने इस कृत्रिम ग्लेशियर को 'बर्फ का स्तूप' नाम दिया है।
इनका निर्माण करके पानी को इकट्ठा करना शुरू किया गया था, जिससे लद्दाख के लोगों को पानी की किल्लत से बहुत हद तक निजात मिली। उनके इस कार्यक्रम को ‘ऑपरेशन होप’ नाम दिया गया था। सोनम की इस खोज ने उन्हें पूरी दुनिया में पहचान दिलाई।
वह छात्रों द्वारा 1988 में स्थापित स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसईसीओएमएल) के संस्थापक-निदेशक भी हैं। संस्थापक छात्रों के अनुसार वो एक विदेशी शिक्षा प्रणाली का विरोध कर रहे हैं।
इसके अलावा सोनम को एसईसीएमओएल परिसर को डिजाइन करने के लिए भी जाना जाता है जो पूरी तरह से सौर-ऊर्जा पर चलता है, और खाना पकाने, रोशनी या हीटिंग के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग नहीं करता है।
सोनम वांग्चुक हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स, लद्दाख के निदेशक भी हैं। वे लद्दाख में शिक्षाविद और पर्यावरणविद की भूमिका में भी हैं। उन्हें साल 2018 में समाज में अपनी नई तकनीकों के जरिए जीवन को सुगम बनाने के लिए मैग्सेसे पुरस्कार मिल चुका है। उन्होंने 1988 में लद्दाखी बच्चों और युवाओं का समर्थन करने और उन छात्रों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से सेक्मॉल की स्थापना की थी।
सोनम वांगचुक का जन्म 1966 में लेह के उलेतोकपो गांव में हुआ था। सोनम ने 9 साल की उम्र तक कोई भी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी, क्योंकि उनके गांव में कोई स्कूल नहीं था। उन्हें 9 साल की उम्र में श्रीनगर के एक स्कूल में दाखिला मिला था।