अनुच्छेद 370 खत्म करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव पहली बार हो रहा है। इसलिए उम्मीदवारों के बीच चुनाव प्रचार का मुख्य मुद्दा 'अनुच्छेद 370' और 'राज्य का दर्जा' रहा।
विकास, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, बेहतर सड़कें, सुरक्षित पेयजल, सस्ती बिजली और नागरिक सुविधाएं हर राजनीतिक दल के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा थीं, लेकिन आखिरकार लड़ाई उन लोगों के बीच थी जो 'अनुच्छेद 370' की बहाली और जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देना चाहते थे।
दिलचस्प बात यह है कि 'अनुच्छेद 370' की बहाली नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसी क्षेत्रीय पार्टियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण थी, लेकिन राज्य का दर्जा हर राजनीतिक दल द्वारा किए गए घोषणा पत्र में से एक वादा था।
विधानसभा चुनाव में एनसी के साथ पूर्व गठबंधन के बावजूद कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में या राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, सचिन पायलट और प्रियंका गांधी सहित अपने शीर्ष नेताओं के भाषणों में अनुच्छेद 370 के बारे में बात नहीं की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और अन्य सभी वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने मतदाताओं से कहा कि केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा अस्थायी है और जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा।
चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा उठाया गया एक मुद्दा यह था कि संसद में बहुमत वाली केंद्र की सरकार ही जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल कर सकती है।
इसके बावजूद, कांग्रेस, एनसी और पीडीपी ने इस मुद्दे को नहीं छोड़ा। पूरे चुनाव प्रचार में एनसी अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला, उनके बेटे और एनसी उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सहित पीडीपी नेतृत्व ने राज्य के मुद्दे का उल्लेख किए बिना एक भी भाषण नहीं दिया।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में आखिरी चरण के 40 सीटों के लिए एक अक्टूबर को मतदान होना है, वहीं आठ अक्टूबर को चुनावी नतीजे सामने आएंगे।