वाराणसी, 12 अक्टूबर ( आईएएनएस): । राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने मदरसा फंड रोकने की सिफारिश की है। आयोग ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और प्रशासकों को पत्र लिखा है। इस पत्र में कहा गया है कि मदरसा बोर्ड बंद किए जाएं। आल इंडिया टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया, यूपी के महासचिव दीवान साहेब जमा खां ने शनिवार को इसका विरोध किया है। उन्होंने कहा कि एनसीपीसीआर को इस पर अपील करने का कोई अधिकार नहीं है।
से बातचीत में उन्होंने कहा कि एनसीपीसीआर द्वारा मदरसों को बंद करने की अपील उचित नहीं है। क्योंकि मदरसे आज नहीं बने हैं। यह एक व्यवस्था है। शिक्षा संहिता के तहत मदरसा और संस्कृत विद्यालय 1908 से एक साथ चल रहे हैं। इनका उद्देश्य संस्कृत, अरबी और फारसी को बढ़ावा देना है। यह विद्यालय 1908 से चल रहा है। संभव है कि इसमें सुधार की जरूरत हो। हर व्यवस्था समय के साथ सुधरती है। इसमें भी सुधार होना चाहिए। एनसीपीसीआर द्वारा अचानक किसी व्यवस्था को बंद कर देना उचित नहीं है।
उन्होंने बताया कि बनारस में 100 मदरसे मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं। इनमें से 23 मदरसे सरकार द्वारा वित्तपोषित हैं। इनके शिक्षकों को सरकार वेतन देती है। इन मदरसों में करीब डेढ़ लाख बच्चे पढ़ते हैं।
इस मामले में आगे की जाने वाली कार्रवाई के बारे में उन्होंने कहा कि एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल कर दी है। इसलिए अब मैं सुप्रीम कोर्ट के वकील से बात करूंगा कि इस तरह की अपील अवमानना की श्रेणी में आती है या नहीं। इस पर आगे चर्चा की जाएगी। लेकिन एनसीपीसीआर को इस तरह की अपील नहीं करनी चाहिए। पूरा मामला पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। मदरसा और संस्कृत विद्यालय का पूरा सिलेबस सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। मदरसा में कुल 17 लाख बच्चे पढ़ते हैं। इनका भविष्य और व्यवस्था कैसे बेहतर हो सकती है। इसमें सुधार की क्या जरूरत है। ये सारी बातें सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन हैं। सुप्रीम कोर्ट इन सारी बातों पर विचार कर रहा है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी व्यवस्था को खत्म करना सही नहीं है, बल्कि उसमें सुधार किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि मदरसों में 20 प्रतिशत गैर मुस्लिम बच्चे पढ़ते हैं। पूरे उत्तर प्रदेश में करीब दो से ढाई लाख गैर मुस्लिम बच्चे मदरसों में पढ़ते हैं। इसके लिए हमने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था। करीब 5 प्रतिशत गैर मुस्लिम शिक्षक भी मदरसों में हैं। ऐसा नहीं है कि यह किसी एक समुदाय को पैसे देने की बात है। एनसीपीसीआर एक संवैधानिक संस्था है, उसे पूरे सिस्टम को खुले दिल से देखना चाहिए। उन्हें देखना चाहिए कि इसे और कैसे बेहतर बनाया जा सकता है।