मथुरा, 12 अक्टूबर ( आईएएनएस): । विजयादशमी के अवसर पर शनिवार को देशभर में रावण का पुतला दहन किया जाएगा। उत्तर प्रदेश के मथुरा में एक अलग ही परंपरा है। यहां लोग इस सबसे हटकर अलग कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। खास बात यह है कि मथुरा यमुना पार थाना क्षेत्र के महादेव शिव मंदिर में सारस्वत ब्राह्मण समाज द्वारा लंकापति रावण की विधि-विधान से पूजा की गई।
रावण भक्तों ने कहा कि हिंदू संस्कृति के अनुसार एक व्यक्ति का अंतिम संस्कार एक बार ही होता है और हमारे भगवान रावण का बार-बार दहन किया जाना गलत है। हम इसके खिलाफ हैं। हां, रावण दहन नहीं बल्कि राम और रावण की लीलाओं का मंचन होना चाहिए। रावण दहन से प्रदूषण भी होता है और कई जगहों पर रावण दहन के दौरान बड़ी घटनाएं भी हो जाती हैं।
अधिवक्ता ओमवीर सारस्वत ने को बताया कि भगवान श्रीराम ने लंका विजय से पहले रावण को अपना आचार्य बनाया था। लंका पर विजय पाने के लिए उन्होंने महादेव जी की स्थापना की थी और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। उस समय भगवान श्रीराम ने रावण को अपना आचार्य बनाकर एक तरह का सम्मान दिया था। जो सम्मान आज हमारा समाज रावण को नहीं दे रहा है। इसी कारण मथुरा में रावण की पूजा की जाती है। दशानन के वंशज उनकी विशेष पूजा करते हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ इतना है कि रावण का पुतला न जलाया जाए। राम और रावण के बीच युद्ध हो। उसका मंचन हो। उनके गुणों का वर्णन हो।
उन्होंने कहा कि इस दुनिया में रावण जैसा कोई विद्वान नहीं है। अगर कोई विद्वान या ब्राह्मण का पुतला जलाता है तो यह ब्रह्म दोष है। ब्रह्म हत्या का दोषी होता है। समाज को ऐसा नहीं करना चाहिए। हमने इस मामले को लेकर बार-बार कोर्ट से प्रार्थना की। उस पर जिला कोर्ट ने हमें निर्देश दिया। यह मामला पूरे देश का है। इसकी सुनवाई सिर्फ सुप्रीम कोर्ट ही कर सकता है। यह हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इसलिए हम इसकी सुनवाई नहीं कर सकते। हम समाज से भी बार-बार प्रार्थना करते हैं कि पुतला दहन की प्रथा को खत्म किया जाए।
अधिवक्ता ने कहा कि एक बार कोर्ट से मामला खारिज होने के बाद हमने इस मुद्दे को दोबारा नहीं उठाया। क्योंकि, जब तक हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे तब तक बहुत लंबा समय लग जाएगा। अब हार मानकर हम सिर्फ जनता से प्रार्थना कर रहे हैं।