13 अक्टूबर 1948 को पाकिस्तान के फैसलाबाद में जन्मे नुसरत फतेह अली खान एक संगीत घराने से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता उस्ताद फतेह अली खान मशहूर कव्वाल थे। परिवार में कव्वाली की परंपरा लगभग 600 सालों से चली आ रही थी, लेकिन नुसरत के पिता ने इस परंपरा को तोड़ना चाहा और वह अपने बेटे को किसी और क्षेत्र में भेजना चाहते थे। हालांकि, तकदीर के आगे उनकी भी ना चली और पिता ने नुसरत की आवाज को खुदा का करिश्मा बताया और बाद में नुसरत ने गायकी को ही अपनी करियर बनाने का फैसला किया।
नुसरत ने 15 साल की उम्र में अपना पहला परफॉर्मेंस दिया। लेकिन, पिता की मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। साल 1971 में उन्होंने 600 सालों से परिवार में चली आ रही कव्वाली की परंपरा को खुद संभाला और इसमें उन्होंने सरगम, ख्याल और लय की अपनी अनूठी शैली को जोड़ा।
80 का दशक आते-आते नुसरत साहब के नाम का सिक्का चल निकला। पाकिस्तान हो या हिंदुस्तान या फिर यूरोप और अमेरिका। हर जगह उनको सुनने वालों की संख्या बढ़ने लगी। 1980 के दशक की शुरुआत में इंग्लैंड की म्यूजिक कंपनी ओरिएंटल स्टार एजेंसीज ने उनके साथ एक कॉन्ट्रैक्ट किया। इसके बाद नुसरत फतेह अली खान की आवाज में कई गाने रिकॉर्ड किए गए, जिसकी डिमांड यूरोप, भारत, जापान, पाकिस्तान और अमेरिका तक बढ़ने लगी। नुसरत फतेह अली खान ने करीब 40 से अधिक देशों में अपने शो किए।
नुसरत फतेह अली खान ने अपने करियर के दौरान ‘दयारे इश्क में अपना मुकाम पैदा कर’, ‘तुम इक गोरखधंधा हो’, ‘दमादम मस्त कलंदर’, ‘छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिला के’, ‘हुस्न जाना की तारीफ मुमकिन नहीं’, ‘तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी’, ‘सांसो की माला पे सिमरु में रब का नाम’ जैसी मशहूर कव्वालियों को अपनी आवाज दी। उनकी गजल गायकी से लेकर कव्वाली तक ने लोगों का दिल जीता।
इसके अलावा उन्होंने बॉलीवुड फिल्मों के लिए भी कई गीतों को आवाज दी। उन्होंने पहली बार साल 1994 में आई बैंडिट क्वीन के गीत को अपनी आवाज दी। इसके बाद उन्होंने फिल्म 'और प्यार हो गया', 'शहीद-ए-मोहब्बत', 'धड़कन' और 'कच्चे धागे' के लिए गाना गाया।
नुसरत फतेह अली खान को संगीत में योगदान के लिए साल 1987 में पाकिस्तान में ‘प्राइड ऑफ परफॉरमेंस’ से सम्मानित किया गया। साल 1995 में उन्हें ‘यूनेस्को संगीत पुरस्कार’ से भी नवाजा गया। इसके अलावा 1997 में उन्हें दो ग्रैमी पुरस्कारों के लिए भी नॉमिनेट किया गया था।
उन्होंने अपनी मौत से पहले तक सबसे अधिक कव्वाली की रिकॉर्डिंग करने का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया। उन्होंने लगभग 125 से अधिक कव्वाली एल्बम रिकॉर्ड किए थे। नुसरत फतेह अली खान ने 16 अगस्त 1997 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।