इंदौर के देपालपुर तहसील के गौतमपुरा इलाके में वर्षों से परंपरा चली आ रही है कि दीपावली के अगले दिन गौतमपुरा और रुणजी के निवासियों के बीच हिंगोट युद्ध होता है। यह परंपरा युद्ध कौशल के प्रदर्शन को दर्शाती है। इसी क्रम में शुक्रवार को भी कलंगी और तुर्रा दलों के बीच हिंगोट युद्ध हुआ। सुरक्षा-व्यवस्था के लिए प्रशासन की ओर से खास इंतजाम किए गए थे। एंबुलेंस भी मौके पर मौजूद रही।
दोनों ही दलों ने देवनारायण मंदिर में पूजा-अर्चना की और उसके बाद वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन किया। इस मौके पर बड़ी संख्या में दर्शक भी मौजूद थे। प्रशासन ने उनकी सुरक्षा का पूरा इंतजाम किया था। दोनों ओर से आग के जलते हुए गोले एक-दूसरे पर फेंके गए। दोनों ही दलों के प्रतिभागी अपने कंधे पर एक झोला भी टांगें हुए थे जिसमें गोले भरे हुए थे। अंधेरा होते ही युद्ध पर विराम लग गया। इस युद्ध में न तो कोई जीता और न ही कोई हारा। भारी संख्या में लोग इस युद्ध को देखने के लिए जमा हुए। इस युद्ध के दौरान दर्शकों ने भी खूब आनंद लिया और दोनों ही दलों का उत्साहवर्धन किया।
हिंगोट युद्ध को लेकर स्थानीय लोगों में बड़ा उत्साह होता है। वह इसकी तैयारी काफी पहले से शुरू कर देते हैं। हिंगोरिया एक नारियल जैसा फल होता है जिसका बाहरी आवरण कठोर और अंदर गूदा वाला फल होता है। फल को निकालकर अलग कर दिया जाता है, धूप में सुखाया जाता है और उसके स्थान पर बारूद भर दिया जाता है। इस फल को रॉकेट की तरह तैयार किया जाता है ,जिसमें एक लकड़ी फंसाई जाती है, इसके ऊपरी हिस्से में आग लगाने के लिए रुई की बाती लगाई जाती है और निचले हिस्से में लकड़ी निकली होती है जिसके जरिए जलता हुआ हिंगोट दूसरे दल पर फेंका जाता है।