इन सांचे से तैयार ठेकुआ ही इस लोकपर्व को और भी खास बना देता है। आटे और गुड़ से बने ठेकुआ के बिना महापर्व छठ की कल्पना भी नहीं की जाती। छठ का नाम आते ही प्रसाद के रूप में ठेकुआ की तस्वीर सामने आ जाती है। बहुत कम लोगों को मालूम होता है कि जिस सांचे से ठेकुआ बनाया जा रहा है, उस लकड़ी के सांचा को विशेष तौर पर बनाया जाता है।
वैशाली के लालगंज में एक नहीं, बल्कि अनेक परिवार लकड़ी के कारोबार से जुड़े हुए हैं। यहां लकड़ी के कई घरेलू सामान बनाए जाते हैं, लेकिन छठ पर्व का विशेष इंतजार इन कारोबारियों को रहता है। छठ पर्व के दो माह पूर्व से ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। लकड़ी से बने सांचा पर ही छठव्रती गेहूं के आटा का ठेकुआ बनाती हैं। लकड़ी के बने सांचे पर तरह-तरह के डिजाइन होते हैं, जिस पर गेंहू के आटा को रखकर ठेकुआ को और आकर्षक बनाया जाता है।
एक अनुमान के मुताबिक, लालगंज में करीब 600 लोग लकड़ी कारोबार से जुड़े हैं। लालगंज के कारीगर अमरेश बताते हैं कि इस सांचे का खास महत्व है। इसे बनाने में विशेष तौर पर आम और शीशम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। आम की लकड़ी आमतौर पर पूजा पाठ में इस्तेमाल की जाती है। यहां के बने सांचे बिहार के करीब सभी शहरों में जाते हैं। इसके अलावा कोलकाता और दिल्ली भी भेजा जाता है।
उन्होंने बताया कि हम लोग यहां बड़े व्यापारी को सामान बनाकर दे देते हैं और वह फिर अन्य बड़े शहरों तक भेजता है। एक अन्य कारीगर संजय कुमार बताते हैं कि छठ में सांचे की मांग बढ़ जाती है। यह सांचा हर घर तक पहुंचता है, क्योंकि ऐसा कोई घर नहीं है, जहां कभी छठ नहीं हुआ है। इसकी कीमत नंबर के आधार पर तय होती है। एक नंबर से छह नंबर तक सांचा बनाया जाता है। सभी नंबरों के अलग-अलग साइज है। यहां सांचा छह से लेकर 30 रुपये तक उपलब्ध होता है।