इसरो के 4,700 किलोग्राम वजन वाले जीसैट-एन2 उपग्रह का उद्देश्य दूरदराज के क्षेत्रों में डाटा या इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराना है।
इससे भारतीय क्षेत्र में हवाई जहाजों में इंटरनेट की उपलब्धता भी संभव हो सकेगी।
इसरो का प्रक्षेपण यान मार्क-3 चार हजार किलोग्राम वजन तक के उपग्रहों को भू-स्थैतिक स्थानांतरण कक्षा में पहुंचाने में सक्षम है। चूंकि जीसैट-एन2 का वजन इससे ज्यादा है, इसलिए अंतरिक्ष एजेंसी स्पेसएक्स के प्रक्षेपण यान का उपयोग कर रही है।
यह स्पेसएक्स का उपयोग करके इसरो का पहला वाणिज्यिक प्रक्षेपण है।
जीसैट-एन2 (जीसैट-20) अंतरिक्ष विभाग और इसरो की वाणिज्यिक शाखा न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) का एक का-बैंड वाला उच्च-थ्रूपुट संचार उपग्रह है।
उपग्रह में कई स्पॉट बीम हैं और इसका लक्ष्य छोटे यूजर टर्मिनलों के साथ बड़े ग्राहक आधार का समर्थन करना है।
इसरो के अनुसार, "जीसैट-एन2 का मिशन काल 14 साल है और यह 32 यूजर बीम से लैस है, जिसमें पूर्वोत्तर क्षेत्र पर आठ स्पॉट बीम और शेष भारत में 24 वाइड स्पॉट बीम शामिल हैं। ये 32 बीम देश के भीतर स्थित हब स्टेशनों द्वारा समर्थित होंगे। का-बैंड एचटीएस संचार पेलोड लगभग 48 जीबीपीएस का थ्रूपुट प्रदान करता है।"
बेंगलुरु स्थित यू.आर. राव सैटेलाइट सेंटर के निदेशक डॉ. एम. शंकरन ने कहा, "जब यह स्वदेशी उपग्रह परिचालन में आ जाएगा तो यह विश्व इंटरनेट मानचित्र पर भारत में मौजूद इन-फ्लाइट इंटरनेट कनेक्टिविटी की बड़ी कमी को दूर कर देगा।"
उन्होंने आगे कहा कि, "यह भारत का सबसे अधिक क्षमता वाला उपग्रह है और एकमात्र ऐसा उपग्रह है जो बहुप्रतीक्षित का-बैंड में विशेष रूप से काम करता है।"
मौजूदा समय में जब अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें भारतीय वायु क्षेत्र में प्रवेश करती हैं, तो उन्हें इंटरनेट बंद करना पड़ता है क्योंकि भारत इस सेवा की अनुमति नहीं देता है। लेकिन, हाल ही में भारत ने उड़ान के दौरान देश में इंटरनेट की सुविधा देने के लिए नियमों में संशोधन किया है।
नए नियमों के अनुसार, तीन हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर विमान के अंदर वाई-फाई सेवाएं प्रदान की जा सकती हैं।
हालांकि यात्री इन सेवाओं का उपयोग तभी कर पाएंगे जब विमान में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उपयोग की अनुमति होगी।