माजिद मेमन ने कहा कि 'वन नेशन, वन इलेक्शन' एक बहुत ही जटिल मुद्दा है। महीनों तक राजनीतिक दलों, संस्थाओं, कार्यकर्ताओं और समाज के विभिन्न वर्गों से राय मांगी गई और डेटा एकत्र किया गया। मेरा मानना है कि कई राजनीतिक दलों सहित कई अन्य संस्थाओं ने प्रस्ताव में खामियों की ओर इशारा किया है। भारत एक विशाल देश है जहां हमारे पास 700 से 800 मिलियन मतदाता हैं।
राज्य और केंद्र दोनों ही चुनाव एक साथ कराना आसान नहीं है। हम इसका विरोध क्यों कर रहे हैं, इसके कई कारण हैं। सबसे पहले, बेशक, हमारे पास इतनी ताकत नहीं है कि हम एक साथ चुनावों की निगरानी और संचालन कर सकें। दूसरा, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्यों के महत्व, शक्तियों, स्वतंत्रता और अधिकार को कमतर आंकने की कोशिश की जा रही है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य यह है कि ज्यादातर राज्यों या यहां तक कि केंद्र में भी एक पार्टी का शासन नहीं है।
देश के लोग किसी भी एक राजनीतिक दल को शासन करने नहीं देते, चाहे वह केंद्र में हो या राज्यों में। इसका नतीजा यह होता है कि जब पार्टियों का गठबंधन किसी तरह से जरूरी संख्या जुटा लेता है और सत्ता पर काबिज हो जाता है। तो वे बहुत जल्द ही बिखर जाते हैं और बीच में ही, चुनाव के पहले साल से ही, उनमें मतभेद हो सकते हैं और दलबदल वगैरह भी बहुत होता है इसलिए, सरकारें गिर जाती हैं।
अब अगर देश में एक ही चुनाव हो, सभी चुनाव एक साथ हों और लगभग 4, 6, 8 राज्यों की सरकार पहले या दूसरे साल में ही गिर जाएं, तब क्या होगा? उन्होंने आगे कहा कि यह भारतीय राज्य व्यवस्था, क्षेत्रीय प्राधिकरण के सर्वोत्तम हित में नहीं है और इसलिए संघवाद इसका शिकार है। मुझे डर है कि यह अनुभव आने वाले दिनों में केवल अराजकता और भ्रम लाएगा, इससे राज्यों और पूरे देश के लोगों की संवैधानिक स्वतंत्रता को नुकसान पहुंचेगा।