इस बीच, उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा, “जब हम किसी विशेष घटना को या किसी स्थिति को गलत मानते हैं, तो हमें लगता है कि यह एक गंभीर मुद्दा है और हमें इसे सुधारने की आवश्यकता है। लेकिन, न्यायिक प्रणाली को हमेशा एक स्वतंत्र व्यवस्था के रूप में देखा जाता है, जिसमें न्यायाधीशों को किसी भी मामले पर विचार करते समय पूरी स्वतंत्रता होती है। वे अपनी समझ और संविधान के अनुसार ही फैसले लेते हैं, और जरूरी नहीं कि वही बिंदु उनके लिए उतना महत्वपूर्ण हो, जितना हम सोचते हैं। न्यायिक प्रणाली का उद्देश्य निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से न्याय देना है।”
उन्होंने कहा, “ सरकार चुनाव के पहले साल में बड़े निवेश प्रस्तावों पर चर्चा करती है, लेकिन चुनाव के बाद सरकार का मूड और कार्य प्रणाली बदल सकती है। यह सच है कि कई निर्णय पहले से ही योजना के तहत किए जाते हैं, और चुनाव के समय में राजनीति का प्रभाव प्रमुख हो सकता है। आप यह भी कहते हैं कि यह कोई अचानक से हुआ बदलाव नहीं है, बल्कि यह एक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा है।”
उन्होंने कहा, “जब किसी सरकार को चार साल के समय में योजनाओं को अमल में लाने का अवसर मिलता है, तो यह सही समय होता है। पहले साल में सरकार कई चीजों को सुलझाने में लगी रहती है, फिर समय के साथ नीति, अर्थशास्त्र, और विशेषज्ञों के साथ चर्चा कर निष्कर्ष पर पहुंचती है। ”
उन्होंने कहा, “किसी भी व्यवस्था में, चाहे वह न्यायिक हो या प्रशासनिक, हर निर्णय के पीछे एक गहरी सोच, योजना, और समय की आवश्यकता होती है।”