पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी ने दी महाकुंभ की महिमा, मान्यता और परंपरा के बारे में जानकारी

प्रयागराज, 15 दिसंबर ( आईएएनएस): । प्रयागराज में साल 2025 में महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है। इसके लिए अखाड़ों ने अपनी-अपनी तैयारियां पूरी कर ली हैं। जूना अखाड़े ने शनिवार को छावनी प्रवेश के साथ ही कुंभ की औपचारिक शुरुआत भी कर दी है। प्रयागराज में कुंभ के महत्व, इसकी महिमा और प्राचीन मान्यता आदि पर पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के महंत और अखाड़ा परिषद के अध्‍यक्ष रविंद्र पुरी ने आईएएनएस से बात की।

पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी ने दी महाकुंभ की महिमा, मान्यता और परंपरा के बारे में जानकारी
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रविंद्र पुरी ने अपने अखाड़े के इतिहास के बारे में जानकारी देते हुए बताया, "यह पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी है और इस अखाड़े के गुरुदेव गुरु निरंजन देव भगवान हैं जो भगवान शंकर के पुत्र हैं। दक्षिण भारत में इनको मुरगन स्वामी और उत्तरी भारत में कार्तिक स्वामी के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा गुरु निरंजन देव के नाम से भी इन्हें जाना जाता है। हमारी शिक्षा-दीक्षा इन्हीं के नाम पर दी जाती है। हमारी यह परंपरा है कि जब भी हम संत बनते हैं हमारा व्यक्तिगत कोई गुरु नहीं होता। गुरु निरंजन देव भगवान ही हमारे गुरु होंगे।"

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भारत में कुंभ मेला प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक, इन चार जगहों पर लगता है। इसमें प्रयागराज के कुंभ का विशेष महत्व है। रविंद्र पुरी ने बताया कि प्रयागराज में कुंभ छह साल में और महाकुंभ 12 साल में आता है। रविंद्र पुरी ने बताया कि पूर्व में इनका नाम अर्धकुंभ और पूर्णकुंभ था। परंतु इस बार इसे महाकुंभ का नाम दिया हुआ है।

प्रयागराज के कुंभ के महत्व पर उन्होंने कहा, "प्रयागराज का कुंभ बहुत बड़ा है। यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन है। यह तपोभूमि है और इस भूमि में 25 कोटि देवी-देवताओं का वास है। यहां नाना प्रकार के देवी देवता और कई मंदिर हैं। आपको कई दिन इसकी परिक्रमा करने में ही लगेंगे। माना जाए तो यहां माघ मेले के रूप में हर साल कुंभ जैसा ही होता है। उसमें भी बहुत भीड़ होती है। कुंभ में देश विदेश से संत महात्मा, सनातनी, सभी आते हैं और मैं समझता हूं प्रयागराज का सबसे बड़ा महाकुंभ है।"

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कुंभ की महिमा और प्राचीन मान्यता पर पर रविंद्र पुरी ने कहा, "हम जितने भी संत महात्मा है, हमें भजन और तपस्या करनी होती है। जाने अनजाने में जो भी हमसे पाप होते हैं, उसके प्रायश्चित के लिए हमें कुंभ में आना है, कुंभ में स्नान करना है। कहानी बताई जाती है कि जहां-जहां अमृत की बूंदे गिरी है, वहां-वहां कुंभ मनाया जाता है। प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में अमृत गिरा हुआ है। इसलिए इन जगहों पर कुंभ मनाया जाता है। उस समय की जो नक्षत्र-तिथियां, ग्रह चाल और ग्रह राशि होती हैं, वह समुंदर मंथन के समय के जैसी होती हैं। इसीलिए यह माना जाता है कि वह अमृत की बूंदे अभी भी आकाश से नीचे आ रही है और गंगा जी में आ रही है। हमारा मानना है जाने-अनजाने में जो भी हमसे पाप हुआ है, उससे हमें मुक्ति मिलती है। मां गंगा, यमुना और सरस्वती का आशीर्वाद मिलता है।"

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उन्होंने मेले की तैयारियों पर कहा कि इसके लिए ढाई तीन महीने का समय मिलता है। सरकार का पूरा प्रयास रहता है कि मेला अच्छा हो और भव्य हो। दो ढाई महीने के अंदर सभी कार्य पूरे कर लिए जाते हैं क्योंकि यहां के अधिकारी और ठेकेदार माघ मेले के कारण इसके आदी होते हैं। इसलिए मैं समझता हूं कि आने वाला कुंभ बहुत ही अच्छा, दिव्य और भव्य कुंभ होगा। यहां करीबन 25,000 लेबर लगी है। हमें संतुष्ट रहना चाहिए। फिर वैसे भी हम संत-महात्मा हैं। जो सुविधा हमें मिलती है, उसी में खुश रहते हैं। हमारा अपना मानना है कि सरकार पर ज्यादा भार ना दिया जाए।

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महंत रविंद्र पुरी ने बताया कि अखाड़े में लाखों की संख्या में संत महात्मा है जो महाकुंभ में आते हैं। देश विदेश से हमारे संत आएंगे और ऐसे ही नागा संत होते हैं जो नर्मदाखंड और केदारखंड से आऐंगे। जहां-जहां जंगल होते हैं, वहां हमारे नागा निवास करते हैं और जब महाकुंभ में स्नान के समीप का समय आता है, उस समय सभी नागा संत यहां पहुंचते हैं। वे गंगा जी में स्नान करते हैं और वापस चले जाते हैं।

Courtesy Media Group: IANS

 

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