झारखंड के पारंपरिक वाद्य यंत्र 'मांदर' को जीआई टैग पर 20 को अंतिम सुनवाई

रांची, 17 दिसंबर ( आईएएनएस): । झारखंड के सदियों पुराने पारंपरिक वाद्य यंत्र 'मांदर' को जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैग के तौर पर जल्द ही मुकम्मल पहचान मिल सकती है। इसके लिए भारत सरकार के रजिस्ट्रार ऑफ जियोग्राफिकल इंडिकेशन के समक्ष दाखिल की गई झारखंड की दावेदारी पर 20 दिसंबर को आखिरी सुनवाई होनी है।

झारखंड के पारंपरिक वाद्य यंत्र 'मांदर' को जीआई टैग पर 20 को अंतिम सुनवाई
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'मांदर' झारखंड के सभी पर्व-त्योहारों, फसलों से जुड़े उत्सवों, सांस्कृतिक आयोजनों, धार्मिक अनुष्ठानों में बजाया जाने वाला प्रमुख वाद्य यंत्र है। आदिवासी-गैर आदिवासी सभी वर्ग के लोग सदियों से नाच-गान के प्रत्येक अवसर पर इसका उपयोग करते रहे हैं। जीआई टैग मिलने से इस वाद्ययंत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की विशिष्ट बौद्धिक-सांस्कृतिक संपदा के तौर पर प्रस्तुत करने की राह प्रशस्त हो जाएगी।

झारखंड के हिस्से अब तक मात्र एक जीआई टैग है, जो हजारीबाग जिले को 'सोहराई पेंटिंग' के लिए वर्ष 2021 में हासिल हुआ था। रजिस्ट्रार ऑफ जियोग्राफिकल इंडिकेशन के समक्ष 'मांदर' को लेकर दायर किए गए केस में झारखंड के गुमला जिला अंतर्गत रायडीह प्रखंड के जरजट्टा गांव की 'मांदर प्रोड्यूसर कंपनी' को इसके मूल उत्पादक (प्रोड्यूसर) के तौर पर चिन्हित किया गया है।

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जीआई टैग की दावेदारी का केस वर्ष 2023 में गुमला के तत्कालीन उपायुक्त सुशांत गौरव की पहल पर दाखिल किया गया था। मौजूदा उपायुक्त कर्ण सत्यार्थी इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं। बताया गया है कि इस केस को लेकर अब तक हुई सुनवाई में ज्यादातर मापदंडों पर झारखंड की दावेदारी खरी उतरी है। भारतीय संगीत नाट्य अकादमी के काउंसिल सदस्य और झारखंड के प्रसिद्ध लोक कलाकार नंदलाल नायक बताते हैं कि यह ऐसा वाद्य यंत्र है, जिसका प्रतिरूप किसी अन्य देश या प्रदेश में नहीं मिला है।

गुमला जिले का जरजट्टा गांव मांदर निर्माण के लिए प्राचीन समय से प्रसिद्ध रहा है। गांव के 22 परिवारों की चौथी पीढ़ी के सदस्य मांदर बनाने का काम करते हैं। मांदर मूलतः ताल यंत्र है। इसका निर्माण लाल मिट्टी के बेलनाकार ढांचे पर किया जाता है, जिसके बीच में हल्का उभार होता है। यह ढांचा अंदर से खोखला होता है और इसके दोनों तरफ के खुले मुंह चमड़े से ढंके रहते हैं। इसका दायां मुंह छोटा और बायां मुंह चौड़ा होता है।

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मुंह पर चढ़ी खालों को कसने के लिए चमड़े की वेणी का इस्तेमाल किया जाता है। मांदर के छोटे मुंह वाली खाल पर खास तरह का लेप लगाया जाता है। उसे 'किरण' कहते हैं। उसकी वजह से मांदर की आवाज गूंजदार होती है। नाच के वक्त उसे बजाने वाला भी घूमता-थिरकता है। इसके लिए वह रस्सी के सहारे मांदर को कंधे से लटका लेता है।

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Courtesy Media Group: IANS

 

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