दरअसल, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में यूसीसी का प्रस्ताव लाया गया। इस दौरान कैबिनेट ने प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। सूत्रों की मानें तो 26 जनवरी से पूरे उत्तराखंड में यूसीसी लागू कर दिया जाएगा।
सूत्रों के अनुसार, उत्तराखंड सरकार ने पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह की अध्यक्षता में गठित नियमावली एवं क्रियान्वयन समिति के 18 अक्टूबर 2024 को मुख्यमंत्री को सौंपी गई 400 पन्नों की यूसीसी की नियमावली को प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने 100 पन्नों से भी कम कर दी। अब नियमावली में सिर्फ विवाह, तलाक, वसीयत एवं लिव इन रिलेशन के पंजीकरण की ही व्यवस्था है। व्यक्तिगत नागरिक मामलों में उत्पन्न होने वाले विवादों के निस्तारण के लिए अपनाई जाने वाली न्यायिक प्रक्रियाओं को नियमावली से हटा दिया गया है।
गृह विभाग के सूत्रों के अनुसार नियमावली में यह परिवर्तन न्याय एवं विधायी विभाग के कहने पर किए गए हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि साल 2022 में हमारी सरकार ने यूसीसी बिल लाकर जनता से किए गए वादे को निभाया था। उस समय से हम यूसीसी की सारी प्रक्रियाओं को जल्द से जल्द लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रहे थे। यह उत्तराखंड के लिए गौरव की बात है कि प्रदेश सबसे पहले समान नागरिक संहिता लागू करेगा। इससे सभी को फायदा होगा। इसे लागू करने को लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
अब ऐसे में सवाल उठता है कि जिस तरीके से कमेटी का गठन कर इस पूरी प्रक्रिया के तहत यूसीसी को लेकर राय-मशवरा तैयार किया गया, वह मसौदा तैयार होने के बाद अक्षरश: लागू क्यों नहीं किया गया?
अधिकारियों द्वारा जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ समिति द्वारा संपूर्ण प्रदेश में समान नागरिक संहिता हेतु जनसंवाद कार्यक्रमों के माध्यम से जनता द्वारा लिए गए न्यायिक प्रक्रियाओं में सुधार के सुझावों को पूर्णतया खारिज कर देना क्या लोकहित में है, सवाल यह भी है।
ऐसे में राज्य सरकार के यूसीसी को लेकर आज के निर्णय से कई प्रश्न उठ खड़े हुए हैं, जिनका जवाब सरकार को जनता के समक्ष रखना चाहिए और बताना चाहिए कि जिस तरह से यूसीसी का ड्रॉफ्ट तैयार किया गया था, उसको लागू करने में आपत्ति क्या थी?
यूसीसी के ड्रॉफ्ट में जो नियम जनता द्वारा जनसंवाद कार्यक्रमों से प्राप्त सुझावों के जरिए तैयार किए गए थे, उनको नहीं मानना था तो पूरे प्रदेश में इसको लेकर जनसंवाद कार्यक्रमों का आयोजन क्यों किया गया?
जनता ने तो न्यायिक प्रक्रियाओं में सुधार के लिए ही सुझाव दिए थे, इसे मानने में सरकार को आखिर परेशानी क्या हुई?
यदि जन भावना के अनुरूप शत्रुघ्न सिंह कमेटी द्वारा प्रस्तुत की गई 400 पन्नों की नियमावली को खारिज करना था तो उस समिति का गठन ही क्यों किया गया? उस समिति के गठन से लेकर उसके द्वारा यूसीसी का मसौदा तैयार होने तक जनता की जो गाढ़ी कमाई खर्च की गई, उसका क्या फायदा सामने निकलकर आया।
सरकार को जनता को यह भी बताना होगा कि शत्रुघ्न सिंह समिति की नियमावली जो यूसीसी के लिए तैयार की गई थी, उसमें किन कारणों से परिवर्तन किया गया।
क्या नियमावली में ये परिवर्तन न्याय और विधायी विभाग में बैठे अधिकारियों ने न्यायिक प्रक्रियाओं में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए ही किए हैं?
अभी हाल ही में अतुल सुभाष के आत्महत्या मामले में जिस तरह से भारतीय न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े हुए इसको देखते हुए यूसीसी को लेकर तैयार मसौदे में शत्रुघ्न सिंह कमेटी द्वारा बनाई गई न्यायिक प्रक्रियाओं को सरकार के अधिकारियों द्वारा हटा देना क्या सही कदम है?
यूसीसी के जिस मसौदे को आज सरकार ने प्रदेश में लागू करने के लिए जारी किया, उसको लेकर जब शत्रुघ्न सिंह से बात की गई तो उन्होंने बताया कि हमारी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट अक्टूबर 2024 में ही सरकार को सौंप दी थी। सरकार ने जो आज यूसीसी का ड्रॉफ्ट जारी किया है, उसे मैंने नहीं देखा है। ऐसे में मैं उसके बारे में बता नहीं सकता कि हमारी कमेटी द्वारा जो मसौदा तैयार किया गया था, उसमें परिवर्तन किया गया है या हू-ब-हू उसे लागू किया गया है।