उन्होंने ये बातें एनआईटी रायपुर, आईआईटी भिलाई और आईआईएम रायपुर के छात्रों को संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि यूसीसी (यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड) और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों पर चर्चा करते हुए यह कहा जा सकता है कि हमारे संविधान में कुछ महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश दिए गए हैं, जिनका पालन सरकार को करना है। एक न्यायपूर्ण समाज के निर्माण की दिशा में अपने कदम आगे बढ़ाते हुए उत्तराखंड ने एक समान सिविल कोड लागू करने की कोशिश की है।
उन्होंने कहा कि जब हम संविधान में दी गई बातों पर आपत्ति उठाते हैं, तो हमें यह समझना चाहिए कि वे नीति-निर्देशक सिद्धांतों का हिस्सा हैं, जो हमें समय-समय पर बदलाव की दिशा दिखाते हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहा, "संविधान निर्माताओं ने हमें कुछ बुनियादी बातों का पालन करने का निर्देश दिया था, लेकिन साथ ही यह भी संकेत दिया था कि जैसे-जैसे हमारा लोकतंत्र परिपक्व होता जाएगा, हमें अपने लोगों के कल्याण के लिए नए लक्ष्य भी तय करने होंगे। हमें केवल संकीर्ण वोटिंग पैटर्न या तात्कालिक विचारों से प्रभावित होकर फैसले नहीं लेने चाहिए, बल्कि संविधान की दी गई दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा, " देश ने हमें संविधान दिया है और हमारी संप्रभुता भी अडिग है। कार्यकारी संस्थाओं को किसी और को नहीं सौंपा जा सकता है। कार्यपालिका केवल सरकार के पास होती है। अगर कार्यकारी कार्यों को कोई अन्य संस्थान करता है, तो उसे संविधान के खिलाफ माना जाएगा। यह देश के लिए किसी भी सूरत में ठीक नहीं है। हमें राजनीतिक दलों के बीच सार्थक संवाद के रास्ते तलाशने होंगे। बेशक कई राजनीतिक दलों की विचारधाराएं अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन हमें कुछ मुद्दों पर एकजुट होना होगा।"