राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में भारत ने एक मजबूत और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बनाई है। स्वाधीनता के बाद, जब देश में गरीबी और भुखमरी व्याप्त थी, तब भारतीय नागरिकों ने अपने आत्मविश्वास और कठिन श्रम से देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास किए। उन्होंने किसानों, मजदूरों और अन्य श्रमिक वर्गों की भूमिका की सराहना की, जिनके संघर्ष और समर्पण से भारतीय अर्थव्यवस्था आज विश्व में महत्वपूर्ण स्थान बना चुकी है।
उन्होंने कहा कि भारत का संविधान हमारे नागरिकों की सामूहिक अस्मिता का प्रतीक है, जिसने देश को एकजुट किया है। संविधान के आधार पर ही भारत में समावेशी विकास को प्रोत्साहन मिला है, जिससे गरीब और वंचित वर्गों को भी विकास के अवसर मिले हैं। विशेष रूप से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं, जिनसे उनकी स्थिति में सुधार हो रहा है।
अपने संबोधन के दौरान राष्ट्रपति ने पिछले एक दशक में सरकार द्वारा किए गए सुधारों की सराहना की, जैसे कि डिजिटल भुगतान और वित्तीय समावेशन के प्रयास, जो व्यापक स्तर पर लोगों को मुख्यधारा में लाने में सफल रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा किए गए ये सुधार भारतीय जनता को बेहतर जीवन स्तर और अवसर प्रदान करने में मदद कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वर्ष 1947 में हमने स्वाधीनता प्राप्त कर ली थी, लेकिन औपनिवेशिक मानसिकता के कई अवशेष लंबे समय तक विद्यमान रहे। हाल के दौर में, उस मानसिकता को बदलने के ठोस प्रयास हमें दिखाई दे रहे हैं। ऐसे प्रयासों में - इंडियन पीनल कोड, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, और इंडियन एविडेंस एक्ट के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को लागू करने का निर्णय सर्वाधिक उल्लेखनीय है। न्यायशास्त्र की भारतीय परंपराओं पर आधारित इन नए अधिनियमों द्वारा दंड के स्थान पर न्याय प्रदान करने की भावना को आपराधिक न्याय प्रणाली के केंद्र में रखा गया है। इसके अलावा, इन नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध अपराधों पर काबू पाने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।
राष्ट्रपति ने भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की प्रगति का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोटिक्स, और क्वांटम तकनीक जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसके अलावा, उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में किए गए सुधारों का उल्लेख किया, जिससे भारतीय युवा अपने देश को तकनीकी, विज्ञान और अन्य क्षेत्रों में नई ऊंचाइयों तक पहुंचा रहे हैं।
राष्ट्रपति ने अपनी बातों में खेलों की उपलब्धियों का भी जिक्र किया, जहां भारतीय खिलाड़ियों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन किया। इसके साथ ही, उन्होंने विदेशों में भारतीय समुदाय की उपलब्धियों को भी सराहा, जो भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने और भारत का नाम रोशन करने में योगदान दे रहे हैं।
राष्ट्रपति मुर्मू ने महात्मा गांधी के आदर्शों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत को सही दिशा में आगे बढ़ाने के लिए हमें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की आवश्यकता है। उन्होंने सभी देशवासियों से अपील की कि वे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ संघर्ष में अपना योगदान दें और पर्यावरण संरक्षण के लिए एकजुट हों।
राष्ट्रपति ने संविधान सभा के उन महान नेताओं को याद किया जिन्होंने हमारे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की नींव रखी। साथ ही, उन्होंने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि भारत में महिलाओं को उस समय संविधान सभा के कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेने का अवसर मिला, जब दुनिया के कई हिस्सों में उन्हें समानता का अधिकार नहीं था।