जब हार्वर्ड बिजनेस स्कूल ने कुंभ मेले की व्यवस्था का अध्ययन किया, तो उसकी भव्यता देखकर वे हैरान रह गए। लेकिन एक भारतीय के तौर पर, मैं इसमें इससे भी गहरी बात देखता हूं। यह सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि उन शाश्वत सिद्धांतों का उदाहरण है जिन्हें हम अदाणी ग्रुप में अपनाने की कोशिश करते हैं।
सोचिए, हर 12 साल में पवित्र नदियों के किनारे न्यूयॉर्क से भी बड़ा एक अस्थायी शहर बस जाता है। न कोई मीटिंग, न प्रेजेंटेशन, न किसी निवेशक का पैसा। सिर्फ भारतीय जुगाड़ और सदियों से अर्जित अनुभवों का इस्तेमाल।
कुंभ नेतृत्व के तीन अटूट स्तंभ
1. भावनाओं के साथ विशालता
कुंभ का पैमाना केवल उसकी विशालता नहीं, बल्कि उसके प्रभाव में छिपा है। जब समर्पण और सेवा के साथ 20 करोड़ लोग एकत्रित होते हैं, तो यह केवल आयोजन नहीं, बल्कि एक अद्वितीय आत्मिक संगम होता है। इसे मैं "आध्यात्मिक वृद्धि की अर्थव्यवस्था" कहता हूं। जितना बड़ा यह आयोजन होता है, उतना ही यह प्रभावी बनता है, न केवल संसाधनों में बल्कि मानवीय दृष्टिकोण से भी। असली विशालता को आंकड़ों से नहीं, बल्कि उस एकता के क्षणों से मापा जाता है जो यह पैदा करता है।
2. सस्टेनेबिलिटी की परंपरा
सस्टेनेबिलिटी (स्थायित्व) का महत्व समझने से बहुत पहले ही कुंभ मेला "सर्कुलर इकॉनमी" के सिद्धांतों का पालन कर रहा था। नदी केवल जल का स्रोत नहीं, जीवन का प्रवाह है। इसे संरक्षित करना हमारी प्राचीन बुद्धिमत्ता का प्रमाण है। वही नदी, जो लाखों भक्तों की आस्था को संभालती है, मेले के बाद अपने प्राकृतिक स्वरूप में लौट आती है। इसने करोड़ों श्रद्धालुओं को पवित्र किया और फिर खुद को भी उन सभी "अशुद्धियों" से साफ कर लेती है। शायद हमारे आधुनिक विकास के तरीकों के लिए इसमें सबक छिपा है। असली प्रगति यह नहीं है कि हम धरती से क्या लेते हैं, बल्कि यह है कि हम उसे क्या लौटाते हैं।"
3. सेवा के माध्यम से नेतृत्व
कुंभ की सबसे बड़ी ताकत यह है कि इसमें एकल नेतृत्व का कोई स्थान नहीं। सच्चा नेतृत्व आदेश देने में नहीं, सबको साथ लेकर चलने की क्षमता में होता है। अलग-अलग अखाड़े, स्थानीय प्रशासन और स्वयंसेवक एक साथ मिलकर काम करते हैं। यह सेवा के माध्यम से नेतृत्व है, प्रभुत्व के माध्यम से नहीं। आधुनिक संगठनों को इस सिद्धांत से सीख लेनी चाहिए। यह सिखाता है कि महान नेता आदेश देने या नियंत्रित करने के बजाय दूसरों को साथ काम करने और सामूहिक रूप से आगे बढ़ने का माहौल तैयार करते हैं।
सेवा ही भक्ति है, सेवा ही प्रार्थना है और सेवा ही भगवान है।
कुंभ मेला से ग्लोबल बिजनेस को क्या सीख मिलती है?
भारत 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है। इस सफर में कुंभ मेला हमें कई अनोखी सीख देता है:
1. समावेशी विकास
कुंभ मेला सभी का स्वागत करता है – साधु-संतों से लेकर सीईओ, गांववालों से लेकर विदेशी पर्यटकों तक। यह उसका सर्वोत्तम उदाहरण है जिसे हम अडाणी में "अच्छाई के साथ विकास" कहते हैं।
2.आध्यात्मिक तकनीक
जहां हम डिजिटल तकनीक पर गर्व करते हैं, वहीं कुंभ मेला आध्यात्मिक तकनीक को दिखाता है – ऐसे आजमाए हुए तरीके, जो बड़े स्तर पर मनुष्य की चेतना को संभालने में सक्षम हैं। मानसिक स्वास्थ्य जैसे बड़े खतरों के दौर में, यह सॉफ्ट इंफ्रास्ट्रक्चर उतना ही जरूरी है जितना भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर।
3. संस्कृति पर गर्व
जब दुनिया एकरूपता की ओर बढ़ रही है, कुंभ मेला सांस्कृतिक पहचान और प्रामाणिकता का प्रतीक है। यह कोई पुरानी चीजों का संग्रहालय नहीं है, बल्कि परंपराओं का ऐसा जीवंत उदाहरण है, जो आधुनिकता के साथ तालमेल बिठाकर चल रहा है।
क्या भविष्य प्राचीन है?
जब मैं हमारे बंदरगाहों या सोलर फॉर्म से गुजरता हूं, तो अक्सर कुंभ के संदेशों पर सोचता हूं। हमारी प्राचीन सभ्यता ने सिर्फ इमारतें नहीं बनाई थीं, बल्कि ऐसे जीवनतंत्र तैयार किए थे, जो लाखों लोगों को सहारा देते हैं। यही आज के भारत को भी करना है – केवल बुनियादी ढांचे बनाना नहीं, बल्कि ऐसे पारिस्थितिक तंत्र तैयार करना जो लंबे समय तक टिक सकें।
जबकि दुनिया के देश सैन्य ताकत और आर्थिक शक्ति में एक-दूसरे से होड़ कर रहे हैं, कुंभ भारत की अनूठी सॉफ्ट पावर को दिखाता है। वसुधैव कुटुंबकम! यह सिर्फ दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन करने की बात नहीं है। यह मानव संगठन के एक स्थायी मॉडल का प्रदर्शन करने के बारे में है जो हजारों वर्षों से जीवित है।
नेतृत्व के सामने चुनौती
आज के नेताओं के लिए कुंभ एक गहरा सवाल खड़ा करता है – क्या हम ऐसी संस्थाएं बना सकते हैं, जो सिर्फ कुछ वर्षों तक नहीं, बल्कि सदियों तक टिक सकें? क्या हमारे तंत्र सिर्फ बड़े पैमाने पर काम करने में ही नहीं, बल्कि मानवता को छूने में भी सक्षम हैं?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जलवायु संकट और सामाजिक विखंडन के इस दौर में, कुंभ के सबक पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक हैं। ये हमें सिखाते हैं:
- संसाधनों का टिकाऊ प्रबंधन
- सामंजस्यपूर्ण जन सहयोग
- तकनीक को मानवीय दृष्टिकोण से जोड़ना
- सेवा-भावना के साथ नेतृत्व
- बड़े पैमाने पर काम करते हुए भी मानवीय मूल्यों को कैसे बनाए रखें
आगे का रास्ता
जब भारत एक वैश्विक महाशक्ति बनने की ओर बढ़ रहा है, तो हमें याद रखना चाहिए कि हमारी ताकत केवल हमारे निर्माणों में नहीं, बल्कि हमारी धरोहरों को संरक्षित करने में भी है। कुंभ सिर्फ एक धार्मिक मेला नहीं है, यह एक स्थायी सभ्यता का खाका है। यह मुझे याद दिलाता है कि असली मापदंड बैलेंस शीट में नहीं, बल्कि मानव चेतना पर सकारात्मक प्रभाव में है।
कुंभ में हमें भारत की सॉफ्ट पावर की झलक मिलती है – यह शक्ति जीतने या हावी होने से नहीं, बल्कि चेतना और सेवा से जुड़ी है। भारत की असली ताकत उसकी आत्मा में है, जहां विकास सिर्फ आर्थिक शक्ति नहीं, बल्कि मानव चेतना और सेवा का संगम है। कुंभ हमें सिखाता है कि असली विरासत इमारतों में नहीं, बल्कि चेतना में होती है, जो सदियों तक फलती-फूलती रहती है।
इसलिए, जब भी आप भारत की विकास गाथा सुनें, तो याद रखें: हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि कोई बड़ा बंदरगाह या ऊर्जा पार्क नहीं है, बल्कि वह आध्यात्मिक आयोजन है, जो सदियों से सफलतापूर्वक चलता आ रहा है। यह लाखों लोगों की सेवा करता है, बिना संसाधनों को खत्म किए और अपनी आत्मा को खोए बिना।
यही असली भारत की कहानी है।
यही नेतृत्व का वह सबक है, जिसकी दुनिया को आज सबसे ज्यादा जरूरत है।
(गौतम अदाणी अदाणी ग्रुप के अध्यक्ष हैं)