बी-सेल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (बी-एएलएल) बच्चों में होने वाला सबसे आम कैंसर है।
द हॉस्पिटल फॉर सिक चिल्ड्रेन (सिककिड्स) और सिएटल चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के वैज्ञानिकों द्वारा संचालित चिल्ड्रन ऑन्कोलॉजी ग्रुप के क्लिनिकल ट्रायल में आशाजनक परिणाम मिले हैं। इस ट्रायल में चार देशों में 200 से अधिक साइट शामिल थीं।
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित निष्कर्षों से पता चला है कि जिन लोगों ने कीमोथेरेपी और ब्लिनैटुमोमाब (बी-एएलएल से पीड़ित बच्चों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली इम्यूनोथेरेपी) दोनों ली है उनमें बी-एएलएल के दोबारा होने या मृत्यु के जोखिम में 61 प्रतिशत की कमी आई।
अध्ययन के सह-नेता डॉ. सुमित गुप्ता, ऑन्कोलॉजिस्ट और सिककिड्स में बाल स्वास्थ्य मूल्यांकन विज्ञान कार्यक्रम में एसोसिएट साइंटिस्ट ने कहा, "रोग-मुक्त जीवन में महत्वपूर्ण सुधार दिखाने वाले ये महत्वपूर्ण आंकड़े नव निदान बी-एएलएल वाले लगभग सभी बच्चों को जबरदस्त नैदानिक लाभ पहुंचाने के लिए तैयार हैं।"
गुप्ता ने कहा, "इससे दुनिया भर में बी-एएलएल से पीड़ित बच्चों की देखभाल का स्तर बदल रहा है।''
कीमोथेरेपी के विपरीत, ब्लिनैटुमोमाब जैसी इम्यूनोथेरेपी, कैंसर से लड़ने के लिए शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली का उपयोग करती है, इसके साथ ही प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर कोशिकाओं पर लक्ष्य बनाना सिखाती है।
अध्ययन से पता चला कि बीमारी के दोबारा उभरने के औसत जोखिम वाले बच्चों के लिए तीन वर्षों के बाद रोग-मुक्त जीवन दर बढ़कर 97.5 प्रतिशत हो गई, जबकि अकेले कीमोथेरेपी से यह दर 90 प्रतिशत थी।
जिन बच्चों में रोग के पुनः उभरने का जोखिम अधिक था, उन्हें कीमोथेरेपी के साथ-साथ ब्लिनैटुमोमाब देने से रोग-मुक्त जीवन दर 85 प्रतिशत से बढ़कर 94 प्रतिशत हो गई।
अध्ययन की सह-अगुआ सिएटल चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल की बाल चिकित्सा हेमेटोलॉजिस्ट और ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. राहेल राउ ने कहा, ''ये निष्कर्ष बीमारी के दोबारा होने की रोकथाम में ब्लिनैटुमोमाब के उपयोग से हुई प्रगति को रेखांकित करते हैं और वर्तमान चिकित्सीय रणनीतियों में इसकी भूमिका का समर्थन करते हैं।''
निष्कर्षों में कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के 1,440 बच्चे शामिल थे।
टोरंटो विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर गुप्ता ने कहा, "यह नया कॉम्बिनेशन उपचार इन रोगियों के लिए देखभाल का नया मानक बनने जा रहा है, जिससे संभावित रूप से कई लोगों की जान बच जाएगी और बीमारी के दोबारा होने से जुड़े डर और स्वास्थ्य प्रभावों में कमी आएगी।''