नई दिल्ली, 23 दिसंबर ( आईएएनएस): । अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली के एक बाल रोग विशेषज्ञ न्यूरोलॉजिस्ट ने कहा कि स्वास्थ्य कार्यकर्ता नियमित टीकाकरण के दौरान ऑटिज्म के लक्षणों की पहचान कर सकते हैं।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एम्स दिल्ली के बाल रोग विभाग के चाइल्ड न्यूरोलॉजी डिवीजन की प्रोफेसर और फैकल्टी-इन-चार्ज डॉ. शेफाली गुलाटी ने बताया कि ऑटिज्म क्या है और इसे कैसे शुरुआती दौर में पहचाना जा सकता है।
गुलाटी ने कहा, "ऑटिज्म एक न्यूरो डेवलपमेंट डिसऑर्डर है, जिसमें सामाजिक कमियों और बोलने में परेशानी के साथ-साथ कुछ परेशानी और व्यवहार शामिल हैं।"
उन्होंने कहा कि यह स्थिति "रुचि के कुछ निश्चित पैटर्न के साथ आती है, और उनमें सेंसरी इश्यू हो सकते हैं"।
उन्होंने बताया कि 2 साल के भीतर बच्चे में ऑटिज्म की पहचान कैसे की जा सकती है।
गुलाटी ने कहा, "अगर 6 महीने का बच्चा अपने नाम पर प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है या एक साल तक उसने बड़बड़ाना शुरू नहीं किया है। अगर वह 16 महीने की उम्र में शब्द नहीं बोल रहा है। 24 महीने की उम्र में दो शब्द नहीं बोल रहा है, या कुछ शब्दावली भूल गया है, तो उसमें ऑटिज्म का संदेह हो सकता है।''
गुलाटी ने कहा, "जब भी बच्चे टीकाकरण के लिए आते हैं, तो हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम विकास के सभी पड़ावों पर ध्यान दें, इसके साथ ही ऑटिज्म से संबंधित लक्षणों पर भी ध्यान देने की जरूरत है।''
उन्होंने इस बीमारी के शीघ्र इलाज के महत्व पर बल दिया।
उन्होंने आगे कहा कि व्यवहार चिकित्सा में शुरुआती हस्तक्षेप का प्रमुख हिस्सा कुछ दवाओं के साथ शामिल है जो भविष्य में उनके विकास को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है।
उन्होंने लोगों से ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों द्वारा लाई गई विविधता को स्वीकार करने और घर से ही स्वीकार करना शुरू करने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि हमें यह ध्यान रखना होगा कि ऑटिज्म से पीड़ित ये बच्चे बाकी बच्चों से अलग हैं। हर किसी में अलग-अलग विविधता होती है जिसे स्वीकार करना होगा। और जब हम समाज में समावेश की बात करते हैं, तो इसकी शुरुआत घर, फिर स्कूल और समाज से होनी चहिए।
गुलाटी ने कहा कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को किसी और की तरह ही सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है साथ ही उन्होंने लोगों से मानवतावादी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ने का आग्रह किया।
द लैंसेट साइकियाट्री जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि ऑटिज्म भारत में एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य बोझ है।
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज, इंजरी एंड रिस्क फैक्टर्स स्टडी (जीबीडी) 2021 पर आधारित अध्ययन से पता चला है कि भारत में 2021 में प्रति 100,000 व्यक्तियों पर एएसडी के 708·1 मामले थे। इनमें से 483·7 महिलाएं थीं, जबकि 921·4 पुरुष थे। भारत में 2021 में एएसडी के कारण प्रति 100,000 व्यक्तियों में से लगभग 140 लोग खराब स्वास्थ्य और विकलांगता से पीड़ित थे।
विश्व स्तर पर, अनुमान है कि 2021 में 61.8 मिलियन लोग या हर 127 व्यक्तियों में से एक ऑटिस्टिक था।
Courtesy Media Group: IANS