राष्ट्रीय राजधानी में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) द्वारा आयोजित कार्यक्रम का चौथा संस्करण भारत की जैव प्रौद्योगिकी क्षमता को प्रदर्शित करने के बाद संपन्न हुआ। थीम में जैव प्रौद्योगिकी नवाचार और जैव-विनिर्माण में संभावनाओं और अवसरों तथा जैव-अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव पर प्रकाश डाला गया।
इस समारोह में आई4 (उद्योग के लिए नवाचार) और पीएसीई (शैक्षणिक सहयोग और उद्यमिता को बढ़ावा देना) कार्यक्रमों के तहत प्रस्तावों के लिए कॉल की शुरुआत भी हुई। इससे नवाचार को बढ़ावा देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को बल मिला।
बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (बिट्स) पिलानी के समूह कुलपति प्रोफेसर वी रामगोपाल राव ने नैनो प्रौद्योगिकी और क्वांटम प्रौद्योगिकी जैसी अन्य उभरती प्रौद्योगिकियों के लिए जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) के समान संगठनात्मक मॉडल विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
उन्होंने पीएचडी और अकादमिक संकाय के नेतृत्व में डीप टेक स्टार्टअप को बढ़ावा देने के महत्व पर भी जोर दिया, और संस्थानों से उद्यमिता को प्रोत्साहित करने का आग्रह किया।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कहा कि इस कार्यक्रम ने देश और दुनिया के सामने जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत की क्षमता को साक्ष्यों के साथ प्रदर्शित किया। इससे देश में जैव प्रौद्योगिकी नवाचार और जैव विनिर्माण में उछाल लाने का रोडमैप तैयार हुआ।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लिए केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह के अनुसार, भारत की जैव-अर्थव्यवस्था ने उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। यह 2014 में 10 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2024 में 130 बिलियन डॉलर से अधिक हो गई है, तथा 2030 तक 300 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
30 सफल स्टार्टअप हैं, जो जैव प्रौद्योगिकी के भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।
मंत्री के अनुसार, भारत में निवेश करने के लिए अनेक कारण हैं। इसका एक कारण यह है कि दुनिया में वैक्सीन उत्पादन में भारत की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी है, तथा अमेरिका के बाहर एपडीए-अनुमोदित विनिर्माण संयंत्रों की संख्या के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है।
मंत्री ने कहा कि बायो-फार्मा, बायो-कृषि, बायो-औद्योगिक, बायो-ऊर्जा, बायो-सेवाएं और मेड-टेक में निवेश के अवसर उपलब्ध हैं।