“सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं”, सत्ता के गलियारों में गूंजता था दुष्यंत कुमार का नाम

01 Sep, 2024 12:40 PM
“सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं”, सत्ता के गलियारों में गूंजता था दुष्यंत कुमार का नाम
नई दिल्ली, 1 सितंबर (आईएएनएस): । “सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।”, ये रचना पढ़ते ही सबसे पहला नाम आता है दुष्यंत कुमार का। जिनकी इस कविता ने क्रांति का ऐसा जोश भरा कि हर ओर सिर्फ उन्हीं की चर्चा होती थी।

वे हिंदी साहित्य के ऐसे कवि थे, जिन्होंने न केवल सामाजिक मुद्दों पर लिखा बल्कि राजनीतिक मुद्दों पर भी अपने लेखन के माध्यम से अपनी बातों को बेबाकी से रखा।

1 सितंबर 1933 को यूपी के बिजनौर में पैदा हुए दुष्यंत कुमार त्यागी ने बहुत ही कम समय में शायरी के लेखन में अपनी पहचान बनाई। वह सिर्फ 42 वर्ष तक जीवित रहे, लेकिन उन्होंने हिंदी के जाने-माने कवि और शायर के तौर पर खुद को स्थापित किया। उनकी कविताओं और गजलों में क्रांति झलकती थी।

“भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ, आजकल दिल्ली में है, जेरे बहस ये मु्ददा, गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नहीं, पेट भरकर गालियां दो, आह भर कर बद्दुआ”, दुष्यंत कुमार की ये कविता गरीबी को रेखांकित करती है।

बताया जाता है कि दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में जब कदम रखा था। उस समय भोपाल के दो शायरों ताज भोपाली और कैफ भोपाली का गजलों की दुनिया पर राज था। इसके बावजूद दुष्यंत कुमार ने मजबूती के साथ अपनी लेखनी का लोहा मनवाया। 1975 में उनका प्रसिद्ध गजल संग्रह 'साये में धूप' प्रकाशित हुआ। दुष्यंत की गजलों को इतनी लोकप्रियता हासिल हुई कि उनकी लिखी पंक्तियां लोगों की जुबान पर थी।

निदा फाज़ली ने उनके बारे में लिखा था, "दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के गुस्से और नाराज़गी से बनी है। यह गुस्सा और नाराज़गी उस अन्याय और राजनीति के कुकर्मो के खिलाफ नए तेवरों की आवाज़ थी, जो समाज में मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमानंदगी करती है।”

इसके अलावा उन्होंने 'कहाँ तो तय था', 'कैसे मंजर', 'खंडहर बचे हुए हैं', 'जो शहतीर है', 'ज़िंदगानी का कोई', 'मकसद', 'मुक्तक', 'आज सड़कों पर लिखे हैं', 'मत कहो, आकाश में', 'धूप के पांव', 'हो गई है पीर पर्वत-सी' जैसी कविताएं लिखी थीं।

इस रचनाकार ने महज 44 साल में ही सफलता की बुलंदियों को छू लिया था। 30 दिसंबर 1975 ने आधुनिक हिंदी साहित्य को बड़ा सदमा दिया। दुष्यंत कुमार का हार्ट अटैक से निधन हो गया।




सौजन्य मीडिया ग्रुप: आईएएनएस


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