एनआईसीयू वार्ड में अचानक आग लगने से 10 नवजातों की जान चली गई, जबकि 17 अन्य नवजात गंभीर रूप से घायल हुए हैं, जिनका इलाज चल रहा है। इस हादसे ने न सिर्फ अस्पताल प्रबंधन, बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था की सुरक्षा मानकों पर भी सवाल उठाए हैं।
झांसी में हुए इस दर्दनाक हादसे के बाद अधिकारियों ने बाराबंकी जिला महिला चिकित्सालय का रियलिटी चेक किया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वहां की व्यवस्थाएं बेहतर हैं या फिर वहां भी कुछ खामियां हैं जो भविष्य में ऐसे हादसों की वजह बन सकती हैं।
रियलिटी चेक में जिला महिला अस्पताल में आग की घटना से निपटने के सारे इंतजाम चाक-चौबंद मिले। हालांकि, फायर सिस्टम की एनओसी अब भी इंजीनियर की ओर से नहीं दी गई है। जिला महिला अस्पताल में हर सप्ताह मॉक ड्रिल चलाकर फायर फाइटिंग के उपकरण चेक किए जाते हैं।
जिला महिला अस्पताल के सीएमएस डा. प्रदीप कुमार ने बताया कि अस्पताल में आग से संबंधित किसी भी तरह की घटना से निपटने के लिए सभी जरूरी इंतजाम हैं। सभी डॉक्टर ड्यूटी पर रहते हैं। बच्चों की अच्छी तरह से देखभाल हो रही है। हमारे यहां कोई कमी नहीं है।
उन्होंने कहा, "फायर सिस्टम का एनओसी अभी इंजीनियर से नहीं मिला है। हमारे यहां फायर सिस्टम ठीक है। एनओसी जल्द मिल जाएगा। अस्पताल में हर सप्ताह मॉक ड्रिल चलाकर आग से जुड़े उपकरण चेक किए जाते हैं। कर्मचारियों को आज आग बुझाने के लिए विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया है। आग बुझाने के लिए अस्पताल में पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हैं। हम घटना से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।"
बता दें कि झांसी में 'महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज' में शुक्रवार को एनआईसीयू वार्ड में आग लगने से 10 नवजातों की मौत हो गई। वहीं, करीब 47 नवजातों को बचा लिया गया, जबकि 17 अन्य नवजात गंभीर रूप से घायल हो गए, जिनका इलाज चल रहा है।
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक सचिन माहौर ने बताया कि एनआईसीयू वार्ड में 54 बच्चे भर्ती थे। अचानक ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के अंदर आग लग गई। आग बुझाने के प्रयास किए गए, लेकिन कमरा अत्यधिक ऑक्सीजन युक्त होने के कारण आग तेजी से फैल गई। कई बच्चों को बचा लिया गया। 10 बच्चों की मौत हो गई। घायल बच्चों का इलाज चल रहा है।