लगभग दो मिनट का एक वीडियो, सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। इसमें जमात कार्यकर्ताओं को कानू को जूतों की माला पहनाते हुए नजर आते हैं। लोग बुजुर्ग व्यक्ति को घर से बाहर जाने को कहते हुए दिखाई देती है।
कानू चटगांव के कोमिला जिले के चौड्डाग्राम उपजिला के बतिसा यूनियन के लुडियारा गांव के रहने वाले हैं।
कई रिपोर्टों से पता चला है कि कानू रविवार की सुबह स्थानीय बाजार गए थे। यहां कुछ लोगों ने उन्हें पकड़ लिया और कुलियारा हाई स्कूल के सामने ले गए, जहां उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया।
कानू अवामी लीग सरकार के पतन के बाद अपने गांव लौटे थे। उन्होंने स्थानीय मीडिया को बताया कि एक व्यक्ति ने उनके गले पर चाकू भी रख दिया।
बांग्लादेशी ऑनलाइन समाचार पोर्टल बांग्ला न्यूज 24 ने स्वतंत्रता सेनानी के हवाले से कहा, "मुझे लगा था कि इस बार मैं गांव में आराम से रह पाऊंगा। लेकिन उन्होंने मेरे साथ पाकिस्तानी लकड़बग्घों से भी ज्यादा हिंसक व्यवहार किया।"
बीर प्रोतीक या 'बहादुरी का प्रतीक' बांग्लादेश का चौथा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है। कानू उन 426 लोगों में शामिल हैं जिन्हें 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान अनुकरणीय साहस दिखाने के लिए यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
रिपोर्ट के मुताबिक कानू को धमकी देने वाले लोगों में से एक 'कट्टर आतंकवादी' था, जो 2006 में दुबई चला गया था और 5 अगस्त के बाद वापस लौटा, जब मोहम्मद यूनुस और उनकी अंतरिम सरकार ने देश की कमान संभाली।
वर्तमान सरकार ने देश की सबसे बड़ी मुस्लिम पार्टी जमात-ए-इस्लामी पर आतंकवाद विरोधी कानून के तहत लगाया गया प्रतिबंध तुरंत हटा दिया था।
पूर्व पीएम शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग ने इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि बांग्लादेश के युद्ध नायकों के खिलाफ इस तरह की 'घृणित कार्रवाई सहन नहीं की जा सकती। यह देश की गरिमा और इतिहास पर सीधा हमला है। आवामी लीग ने देशवासियों से इसके खिलाफ खड़े होने का आग्रह किया।