कांग्रेस नेता ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ''राज्यपाल रवि ने दावा किया है कि देश के 28 में से 27 राज्यों ने तीन-भाषा नीति को लागू किया है, लेकिन तमिलनाडु के राज्यपाल 'काल्पनिक दुनिया में रह रहे हैं', उनके बयान और जमीनी हकीकत में अंतर है।''
उन्होंने कहा कि कई हिंदी भाषी राज्यों में अंग्रेजी भाषा की शिक्षा का अभाव है। उन्होंने विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ का जिक्र किया। कांग्रेस नेता ने कहा कि इन राज्यों में तीन-भाषा फॉर्मूला प्रभावी रूप से काम नहीं कर रहा है और बारीकी से जांच करने पर यह स्पष्ट हो गया कि केवल एक-भाषा नीति को लागू किया जा रहा है।
चिदंबरम ने यह भी कहा कि इन राज्यों के कई सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी नहीं पढ़ाई जाती है। यहां तक कि जब अंग्रेजी की कक्षाएं संचालित होती हैं, तो अक्सर योग्य शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की जाती।
कांग्रेस नेता ने कहा कि वे व्यक्तिगत रूप से इन राज्यों में कई छात्रों को जानते हैं जो अंग्रेजी में एक भी शब्द बोलने या लिखने में असमर्थ हैं। हिंदी से संबंधित भाषाओं जैसे संस्कृत, पंजाबी और भोजपुरी को दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। इस बीच, तमिल, मलयालम, कन्नड़ और तेलुगु जैसी भाषाओं को 95 प्रतिशत स्कूलों में पर्याप्त रूप से शामिल नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड जैसे प्राइवेट स्कूल और केंद्र सरकार के स्कूल हिंदी पढ़ाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि तमिलनाडु में कई छात्र हर साल दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (डीबीएचपीएस) की ओर से आयोजित बहु-स्तरीय परीक्षाएं देते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, राज्यपाल ने शुक्रवार को कहा था कि भाषा के आधार पर तमिलनाडु को शेष भारत से अलग करने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन ऐसा प्रयास सफल नहीं होगा। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि तमिलनाडु देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जो तीन-भाषा फार्मूले में अन्य भाषाओं को शामिल करने का विरोध कर रहा है, जबकि अन्य सभी 27 राज्यों ने इस नीति को अपनाया है। उन्होंने दावा किया था कि हिंदी को 'थोपने' के खिलाफ बयानबाजी केवल एक बहाना है। उन्होंने तर्क दिया था कि तमिलनाडु को देश के बाकी हिस्सों से अलग-थलग करने की कोशिश की जा रही है।