इसी तरह , 65 वर्षीय किशन कुमार को भी राष्ट्रीय राजधानी के एक डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र केंद्र में कुछ इस तरह की समस्या का सामना करना पड़ा। क्योंकि उनके बेटे का स्मार्टफोन राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के साथ रजिस्टर्ड है, इसलिए ओटीपी उनके बेटे के नंबर पर आता है, जो कि वर्तमान में दूसरे शहर में रहता है। बिना ओटीपी के डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र पाने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती और वे भी खाली हाथ घर लौट आते हैं।
80 वर्षीय विधवा शांति वर्मा ने अपनी अधिक उम्र के बावजूद कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) में जाने का विकल्प चुना क्योंकि उनके पास मदद करने के लिए कोई नहीं था। शांति वर्मा फॉर्म भरते समय तब दंग रह गईं जब उनसे पूछा गया था कि क्या उन्होंने दो बार शादी की है।
ऐसे बुजुर्गों की लिस्ट काफी लंबी है, जो अभी तक डिजिटल और कनेक्टेड इकोसिस्टम का हिस्सा नहीं हैं।
1 नवंबर से, सरकार ने फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक का इस्तेमाल कर पेंशनभोगियों के डिजिटल सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए देश भर में तीसरा और अब तक का सबसे बड़ा डिजिटल जीवन प्रमाण पत्र (डीएलसी) कैंपेन शुरू किया है।
कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के अनुसार, 1.8 लाख से ज्यादा पेंशनभोगियों ने पहले ही दिन अपने डीएलसी बनाए।
हालांकि, डिजिटलीकरण ने कई पेंशनभोगियों को आसानी से अपना जीवन प्रमाण पत्र प्राप्त करने में मदद की है, लेकिन यह उन लोगों के लिए एक चुनौती बनी हुई है जिनके पास डिजिटल कौशल की कमी है और जो डिजिटल तंत्र से अवगत नहीं हैं।
डीएलसी तक पहुंचने के लिए, पेंशनभोगी को प्रमाणीकरण में मदद के लिए स्मार्टफोन कैमरा का इस्तेमाल करना होगा और चेहरे को स्कैन करवाना होगा। आधार बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण जीवन प्रमाण और आधार फेस आरडी ऐप जैसे ऐप के जरिए चेहरे, उंगली और आईआरआईएस प्रमाणीकरण करता है।
डीएलसी प्राप्त करने के लिए कोई भी व्यक्ति निकटतम सीएससी या पेंशन वितरण बैंकों, डाकघरों या नामित सरकारी कार्यालयों में भी जा सकता है।
डीएलसी कैंपेन 3.0 1 से 30 नवंबर तक पूरे भारत में 800 शहरों या जिलों में चलाया जाएगा। कार्मिक मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, "यह अब तक का सबसे बड़ा डीएलसी कैंपेन है।"