उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में जब हम पाते हैं कि हर कोई भौतिकवाद की तरफ जा रहा है। इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हम अपनों को नजरअंदाज कर देते हैं, अपनों का ध्यान नहीं देते हैं। राष्ट्र का ध्यान तभी रहेगा, जब कुटुंब का ध्यान रहेगा। राष्ट्र का ध्यान तभी रहेगा, जब अपनों का ध्यान रहेगा। यह हमारी संस्कृति का मूल सिद्धांत है।
उज्जैन में 66वें 'अखिल भारतीय कालिदास समारोह' में उन्होंने कहा, "कोई भी समाज, कोई भी देश, इस आधार पर नहीं चल सकता कि हम अधिकारों पर जोर दें। हमारे संविधान ने हमें अधिकार दिए हैं, पर हमें उन अधिकारों को हमारे दायित्व से संतुलित करना होगा। नागरिक के दायित्व होते हैं, नागरिक की जिम्मेदारी होती है। इसलिए आज के दिन मैं आपका आह्वान करूंगा, मन को टटोलिए। हम महान भारत के नागरिक हैं। भारतीयता हमारी पहचान है। हमारा राष्ट्रवाद में विश्वास है, राष्ट्र हमारा सबसे बड़ा धर्म है, राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हैं और उसमें हर नागरिक को आहुति देनी है। उसका सबसे श्रेष्ठ माध्यम है कि नागरिक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें।"
युवा पीढ़ी में चरित्र निर्माण पर उन्होंने कहा, "बच्चे हमारी आने वाली पीढ़ी हैं। हमें उनके चरित्र का ध्यान देना चाहिए। नैतिकता का विश्वास उनमें बढ़ाना चाहिए। यह हमारी मुख्य जिम्मेदारी है। बहुत अच्छा है, हम कल्पना करें, आकांक्षा रखें, बच्चा डॉक्टर बने, इंजीनियर बने, अफसर बने, उद्योगपति बने, पर सबसे ज्यादा जरूरी है कि बच्चा अच्छा नागरिक बने, वो नागरिक के महत्व को समझे, नागरिक के कर्तव्य को समझे।"
भारत की ‘सामाजिक समरसता’ पर धनखड़ ने कहा, "आज के दिन ‘सामाजिक समरसता’ को जगह-जगह से चुनौतियां दी जा रही हैं। भारत हमेशा सामाजिक समरसता, विश्व शांति और सबके कल्याण को दृष्टि में रखता है। हम उस देश के वासी हैं, जिसने वसुधैव कुटुंबकम को अपनाया, दुनिया के सामने सार्थक प्रयोग रखा है। हमने दुनिया को योग दिया, यह विद्या हमने दी, क्योंकि हम सबकी सोचते हैं। आज की ज्वलंत समस्या पर्यावरण की है। इसकी ओर हमारा ध्यान महाकवि कालिदास की रचनाओं से मिलता है। उनसे हमें बोध होता है पर्यावरण संरक्षण और सृजन हमारे अस्तित्व के लिए अहम है। जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या पर सभी को ध्यान देना चाहिए और हमें याद रखना चाहिए कि हमारे पास पृथ्वी के अलावा दूसरा कोई रहने का स्थान नहीं है।"
उन्होंने कहा, "मेघदूत प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत नज़ारा दिखाता है। मेघदूत हमें यह भी सिखाता है इस प्रकृति के साथ खिलवाड़ मत करो। इस प्रकृति का सृजन करना हमारा काम है। अगर हम प्रकृति की ओर ध्यान नहीं देंगे तो पहले कह चुका हूं, हमारे पास रहने के लिए दूसरी पृथ्वी नहीं है।"