जोशी ने से खास बातचीत में कहा कि आगामी 15, 16 और 17 नवंबर को गुरुग्राम में होने वाला अखिल भारतीय शोध सम्मेलन ‘विजन फॉर विकसित भारत’ न केवल शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम होगा, बल्कि यह देश में मौलिक शोध को प्रोत्साहित करने और नई दिशा देने में भी मील का पत्थर साबित होगा। इस सम्मेलन का आयोजन भारतीय शिक्षण मंडल के युवा मंडल द्वारा किया जा रहा है और इसमें 1,200 शोधार्थियों का चयन एक कठोर प्रक्रिया के माध्यम से किया गया है।
उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन का उद्देश्य भारतीय शिक्षा पद्धतियों में नयापन लाना और औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति पाने के साथ-साथ मौलिक शोध की ओर कदम बढ़ाना है। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम में 1,200 शोधार्थियों को आमंत्रित किया गया है, जिन्हें पिछले दो वर्षों में लगभग 1,65,000 से अधिक शोधार्थियों के साथ संपर्क कर चयनित किया गया था। इस सम्मेलन के लिए शोध पत्रों के चयन की प्रक्रिया अत्यंत जटिल थी। शोधार्थियों के लिए 11 विशिष्ट थीम्स पर शोध पत्र तैयार करने के लिए कार्यशालाएं आयोजित की गई थीं, जिनमें लगभग छह हजार शोध पत्र प्राप्त हुए थे। इन पत्रों की फिर एक उच्च स्तरीय परीक्षण समिति द्वारा गहन समीक्षा की गई, जिसके बाद 1,200 शोधार्थियों को इस सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया गया।
उन्होंने बताया कि 15 नवंबर को संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत इस सम्मेलन का शुभारंभ करेंगे। इसके अलावा, कार्यक्रम में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख एस. सोमनाथ और नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. कैलाश सत्यार्थी भी प्रमुख उपस्थित रहेंगे।
सम्मेलन के दौरान एक महत्वपूर्ण प्रदर्शनी भी आयोजित की जाएगी, जिसका उद्देश्य 'शोध से बोध (रिसर्च टू रिलाइजेशन)' को प्रकट करना है। इस प्रदर्शनी के माध्यम से शोध और अनुसंधान की नयी दिशा, पारंपरिक शिक्षा पद्धतियों से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) जैसी तकनीकों तक को दर्शाया जाएगा।
साल 2020 में लागू हुई नई शिक्षा नीति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति प्राप्त करना था और यह सम्मेलन भी उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन मौलिक शोध को बढ़ावा देने और हमारे देश की बौद्धिक प्रतिभा पर विश्वास रखने का एक प्रयास है, ताकि हम नवाचार और वैज्ञानिक उन्नति के क्षेत्र में एक कदम और आगे बढ़ सकें।