सत्येंद्र यादव ने से कहा, "आशा, ममता और जीविका अपनी मेहनत से बिहार का भविष्य सुरक्षित कर रही हैं, लेकिन नीतीश कुमार की सरकार उन्हें जीविका के लिए मात्र 2,500 रुपये दे रही है। स्थिति बहुत खराब है और हम मांग करते हैं कि सरकार इन योजनाओं को स्थायी बनाए और 25,000 रुपये प्रतिमाह वेतन दे।"
उन्होंने कहा है कि बिहार में राज्य सरकार द्वारा सामाजिक सुरक्षा पेंशन के तौर पर 400 रुपये दिए जा रहे हैं। इन चंद रुपयों से वृद्ध, विधवा महिलाओं को दो वक्त की रोटी नहीं मिल सकती है। दो वक्त की रोटी तो दूर की बात है दो कप चाय नहीं मिल सकती है। बिहार सरकार जो लोक कल्याण का ढोंग पीटती है। वह बुजुर्गों के साथ सौतेला बर्ताव कर रही है। हम चाहते हैं कि "अगर नीतीश सरकार में जरा भी शर्म बची है" तो केरल की तर्ज बुजुर्गों को पेंशन के तौर पर तीन हजार रुपये दे। वामपंथी पार्टियां सड़कों पर लड़ रही है और हम सदन में लड़ रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि बिहार में आशा वर्कर के तौर पर काम कर रही महिलाओं को सरकार महज 2,500 रुपये प्रति माह देती है। इसके अलावा उन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत कुछ इंसेंटिव भी मिलता है। आशा वर्करों को जन्म प्रमाणपत्र बनाने पर 300 रुपये दिए जाते हैं। गर्भवती महिलाओं की लिस्ट बनाने पर 300 रुपये दिए जाते हैं। बच्चों का टीकाकरण करने के लिए 300 रुपये दिए जाते हैं। हालांकि, इसके अलावा बिहार में वर्षों से आशा वर्कर पक्की नौकरी के लिए आंदोलन भी कर चुकी हैं।