2016 में यूपीआई के आने के बाद भारत दुनिया में डिजिटल पेमेंट्स में बादशाह बना हुआ है। हालांकि यूपीआई से शुरुआत में इतनी सफलता नहीं मिली थी। लेकिन, कोरोना महामारी के दौरान बंदी ने इसे कई गुना बढ़ा दिया। भारत सरकार के आधिकारिक आंकड़ों का अध्ययन करने से पता चलता है कि देश में वित्त वर्ष 2016-2017 में यूपीआई से सिर्फ 36 फीसदी पेमेंट की जाती थी। यह भुगतान दर 2021 खत्म होते-होते 63 फीसदी पहुंच गई। इससे साफ पता चलता है कि 5 साल में यूपीआई पेमेंट्स में बेतहाशा वृद्धि दर्ज की गई।
रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2023 की पहली छमाही में यूपीआई से लेनदेन की राशि 51.9 बिलियन से बढ़कर 78.97 बिलियन हो गई। इस समायावधि में यूपीआई से लेनदेन की वैल्यू 40 प्रतिशत बढ़ी है।
भारत में फोन पे, पेटीएम और गूगल पे, भीम जैसे तमाम एप इस पेमेंट मेथड के लिए उपलब्ध एप हैं। लोग इन्हीं एप के माध्यम से यूपीआई का इस्तेमाल करते हैं। भारत में वॉल्यूम और वैल्यू के मामले में तीन यूपीआई ऐप अग्रणी हैं। इनमें फोन पे, गूगल पे और पेटीएम का नंबर क्रमवार आता है। इस साल के जून महीने तक, इन तीनों ऐप के माध्यम से कुल का 94.83 प्रतिशत था।
इसके अलावा इसी समयावधि में यूपीआई क्यूआर में 39 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो इसी अवधि के दौरान 244.23 मिलियन से बढ़कर 340 मिलियन हो गई है।
भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इस साल अप्रैल-जुलाई की समयावधि में यूपीआई से कुल लेनदेन 81 लाख करोड़ हुआ। यह लेनदेन दुनिया में सबसे ज्यादा है। इस ट्रांजैक्शन में 2023 के मुकाबले में करीब 37 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।
आंकड़े के मुताबिक भारत में यूपीआई से हर एक सेकेंड 3,729.1 रुपए का लेनदेन हुआ है। यह आंकड़ा 2022 तक 2,348 रुपए प्रति सेकेंड था। ऐसे में यूपीआई में 58 फीसद की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।
यूपीआई में आई बढ़ोत्तरी के बारे में बताते हुए अर्थशास्त्र के मशहूर जानकार आकाश जिंदल कहते हैं, “हिंदुस्तान के लिए यूपीआई एक सफल कहानी है। देश और दुनिया में यह लगातार पॉपुलर होता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण इसका सरल इंटरफेस है। यह इतना सरल है कि इसे हर व्यक्ति इस्तेमाल कर पा रहा है। ऐसा नहीं है कि कोई व्यक्ति टेक्नालॉजी में या आईटी में एक्सपर्ट हो वही व्यक्ति इसे इस्तेमाल कर पाए। सबसे बड़ी बात यह है कि आज पूरे देश में कोई भी आम आदमी एक रुपए का भी कुछ लेता है तो वह यूपीआई से पेमेंट करता है। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह इसका सरल इंटरफेस है। देश में इस तकनीक के उन्नति की सबसे बड़ी वजह ही यही है। याद कीजिए 2016 में जब नोटबंदी हुई थी, तब हिंदुस्तान को कैशलेस कैसे बनाया जाए, इस पर गंभीरता से विचार किया जा रहा था। उस समय इस काम में बहुत से मनोवैज्ञानिक बैरियर थे। उस समय सबसे बड़ा सवाल यह था कि छोटे दुकानदारों, रेहड़ी-पटरी वाले या रिक्शा वाले क्या यह तकनीक समझ पाएंगे ? इस तकनीक को अपनाने के लिए वह लोग लैपटॉप कहां से लाएंगे, वह अपने उपकरण चार्ज कहां करेंगे ? ऐसे बहुत से सवाल थे। सरकार ने अपने प्रयासों से यह समझा दिया है कि इसके लिए कुछ अलग से नहीं चाहिए, बस एक मोबाइल होना चाहिए बस। यह ईजी टू यूज, ईजी टू अंडरस्टैंड और ईजी टू अडॉप्ट है।”
वह आगे कहते हैं, “डिजिटल पेमेंट में 2022 में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया था। तब से भारत दुनिया में इस क्षेत्र में नंबर एक है। यूपीआई पेमेंट्स के बहुत फायदे हैं। इससे नोटों का कम इस्तेमाल होता है, तो नोटों के ऊपर छपाई का खर्चा बचता है। साथ ही इससे ब्लैक मनी को कंट्रोल करने में बहुत मदद मिलती है। ये सारी ट्रांजेक्शन मॉनिटर्ड और रिकार्डेड होती हैं। इससे टैक्स चोरी नहीं हो पाती है। भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह में है। भारत के इस सफर के लिए यूपीआई बहुत जरूरी है। अगले कई दशकों तक इस क्षेत्र में भारत को कोई चुनौती नहीं दे पाएगा। भारत अमेरिका को आईटी सेक्टर में बहुत बड़ा निर्यातक है। बीपीओ सप्लाई करता है। पूरी दुनिया तकनीकी क्षेत्र में भारत का लोहा मानती है।”